"सुनो तुमसे कोई पूछे
कभी मतलब मुहब्बत का
तो उसको कुछ बताने से
ज़रा पहले ठहर जाना
उठा कर ख़ाक सर पर
डाल कर इतना फ़क़त कहना
मुहब्बत इब्तेदा से इंतेहा तक
दर्द का पैकर
मुहब्बत बेपनाह तकलीफ का
उजड़ा हुआ मंज़र
गुलों को भी मुहब्बत
आरज़ू ए ख़ार देती है
मुहब्बत ख़ामोशी से धीरे धीरे
मार देती है !!
©Nazrul Islam Faateh
"