ये जो रिश्ते - नातो का खेल हमने रचा है। इसीका नाम | हिंदी कविता

"ये जो रिश्ते - नातो का खेल हमने रचा है। इसीका नाम तो संतो ने स्वार्थ रखा है ।। बिना रूह के वो ही तुम्हे जलाएंगे। जो कहते है तुम मेरी जान हो, तुम्हारे बिन कैसे जी पायेंगे।। ©official lalit"

 ये जो रिश्ते - नातो का खेल हमने रचा है।
इसीका नाम तो संतो ने स्वार्थ रखा है ।।
बिना रूह के वो ही तुम्हे जलाएंगे।
जो कहते है तुम मेरी जान हो, तुम्हारे बिन कैसे जी पायेंगे।।

©official lalit

ये जो रिश्ते - नातो का खेल हमने रचा है। इसीका नाम तो संतो ने स्वार्थ रखा है ।। बिना रूह के वो ही तुम्हे जलाएंगे। जो कहते है तुम मेरी जान हो, तुम्हारे बिन कैसे जी पायेंगे।। ©official lalit

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