पुरुष कहते हैं बुद्धिहीन होती है गृहणियां हाँ बुद् | हिंदी कविता

"पुरुष कहते हैं बुद्धिहीन होती है गृहणियां हाँ बुद्धिहीन होती है हम गृहणियां। तभी तो घर को जोड़ कर रख पाती है गृहणियां। लेकिन भावनाओं से प्रबल होती है हम गृहणियां। तभी तो हम घर और समाज दोनों चलाते है। देश के भविष्य के लिए बच्चों को संस्कारी बनाते है। तुम्हारी बुद्धिमानी भी हमारी भावनाओं से ही मजबूत होती हैं। क्योंकि हम गृहणियां प्रेम,दया,श्रद्धा,समर्पण हर भावना को अपने अंदर समाये रखते है। हाँ गर्व से कहती हूँ एक गृहणी हूं मैं। तुम्हारी नजरों में गृहणी कुछ काम नहीं करती लेकिन बिना गृहणियों के किये ना तुम्हारा ना ही घर का कोई काम नही होता। ©Ragini Pathak"

 पुरुष कहते हैं बुद्धिहीन होती है गृहणियां
हाँ बुद्धिहीन होती है हम गृहणियां।
तभी तो घर को जोड़ कर रख पाती है गृहणियां।
लेकिन भावनाओं से प्रबल होती है हम गृहणियां।
तभी तो हम घर और समाज दोनों चलाते है।
देश के भविष्य के लिए बच्चों को संस्कारी बनाते है।
तुम्हारी बुद्धिमानी भी हमारी भावनाओं से ही मजबूत होती हैं।
क्योंकि हम गृहणियां प्रेम,दया,श्रद्धा,समर्पण
 हर भावना को अपने अंदर समाये रखते है।
हाँ गर्व से कहती हूँ एक गृहणी हूं मैं।
तुम्हारी नजरों में गृहणी कुछ काम नहीं करती
लेकिन बिना गृहणियों के किये ना तुम्हारा ना ही घर का 
कोई काम नही होता।

©Ragini Pathak

पुरुष कहते हैं बुद्धिहीन होती है गृहणियां हाँ बुद्धिहीन होती है हम गृहणियां। तभी तो घर को जोड़ कर रख पाती है गृहणियां। लेकिन भावनाओं से प्रबल होती है हम गृहणियां। तभी तो हम घर और समाज दोनों चलाते है। देश के भविष्य के लिए बच्चों को संस्कारी बनाते है। तुम्हारी बुद्धिमानी भी हमारी भावनाओं से ही मजबूत होती हैं। क्योंकि हम गृहणियां प्रेम,दया,श्रद्धा,समर्पण हर भावना को अपने अंदर समाये रखते है। हाँ गर्व से कहती हूँ एक गृहणी हूं मैं। तुम्हारी नजरों में गृहणी कुछ काम नहीं करती लेकिन बिना गृहणियों के किये ना तुम्हारा ना ही घर का कोई काम नही होता। ©Ragini Pathak

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