बेटा मै प्रखर की ओर निहार रहा हूं
मेरी एक गलती पर पापा ने जवाबी ख़त मे लिखा था
कम हीं ऐसा कभी होता है कि
गलती पर पिता डांटे नहीं आशीष दे
है मेरे साथ हुआ था और
कुछ हीं दिन ज्यादा बड़ा तो कुछ नहीं
जिंदगी को एक रास्ता सा मिल था
उस घटना के लगभग 25 साल हो चुके है
उसी आसमान कि बुलंदियों को निहार रहा था
लगा इस पल को कैद कर लूँ कर भी लिया
वो होनी धुन मे बढ़े जा रहा था
और मैं उस ख़त के हर शब्द के सच होने के एहसास
को जिए जाए रहा था
बस दिल से निकला बेटा अब दुआए मेरी
सफऱ तेरा हा शुरू हो चूका है रुकना मत
बस बढ़ते और बढ़ते हीं जाना
और लौटना तो इस तरह कि मेरे
संग
दादा भी कहे देखो ये मेरा पोता है
जो बेटे से भी आगे है
©ranjit Kumar rathour
शिखर कि ओर