(अब्तर)
हमें...
तेरी हर गुस्ताख़ी का अंदाजा था
आने वाले काले आक़िबत का अंदाजा था ..
हमारे दिल को तस्सली थी की तुम्हारा अत्फ़, अदम में तब्दील न होगा हमारे लिए ...
भावुक अब्सार लिए आयी थी तुम पहली दफा
वजह का पता नही ,अंजाम में किया तूने ही जफ़ा
मुझे बे नज़ीर बनाया ,तूने अपनी जिंदगी का
तेरा जूठा इश्क़ तेरे लबों से बतिया रहा था
हमे मालूम था ,फिर भी तेरा ख्याल आ रहा था
बातें हमसे करना ,तेरे नजर की हवा कहि ओर रुख़ करती लगी थी हमे ...
उस हवा की दिशा ज्ञात थी ,कर भी कुछ नही पाते...
हवा तो अपनी आज़ादी के लिए मशहूर है
आखिर मैने उस पर्दे को उठा दिया जो वो रखती थी हमारे फ़िक्र में
जाना तेरा कष्टदयी था.
मेरा किरदार अब्तर हो गया था ..
जिन हाथों में तेरे हाथ होते थे
अंत में कलम उन हाथो की अजीज बन गई
स्वाभाविकता से कलम की स्याही ख़त्म हो जाती है
लेकिन मेरी कलम ने मुझे तेरे जैसा दग़ा नही दिया
कलम में स्याही तो में पुनः भर दूंगा
किन्तु ...
तुम अपनी गुस्ताख़ी का ख़ामियाज़ा भर पाओगी?
©Tejveer charan
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