(कहना था कुछ लबों पे रह गया )
परिस्तिथियों का काला रंग ओस के भाँती
हम पे छा गया था..
जब तक हम कुछ अल्फ़ाज़ कहते है सर्दिया भी गई
ओर कोहरा भी लुप्त हो गया
कहना गलत होगा तुम चली गई बिन सुने
हमे तो ठेस अपनी उमीदों से मिली है
तेरी हर नाराजगी को, नादानी समझता था
तेरे समुख आते , नैनों में मसरूफ़ हो जाता था
तेरी हर मुस्कराहट को खैरियत समझता था
कहना था कुछ लबों पे रह गया ..
तुम अभी भी मेरे ह्रदय में हो
मेरा होना , यह साबित करता है
दिल चाहता था.....
तेरी हर यादों का किस्सा बनना
तेरे अल्फाज़ो का स्वर बनना
बस कहना था कुछ लबों पे रह गया ..
मेरी हर कोशिसे नाकाम रही जताने में
शायद हम में कमी थी हिचकिचाह, हुई बताने में
मेरे ख़यालो में ,मेरे अरमानो में ,मेरे ज़ज्बातों में तुम
जब तुम सब सहेजकर चली गई
तब भी मेरी सोच में ,मेरी हर नज़्म में हो तुम
कहना था कुछ लबों पे रह गया
कहना था कुछ लबों पे रह गया..
©Tejveer charan
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