घर पूछता है
वो घर जिसे मैं…. पीछे छोड़ आई थी……मेरे मां बाप को
वो घर पूछता है…….
याद करता है…. वो घर मेरे पिताजी को…. जहां करते थे … वो योगा
वो पूजाघर …..जहां मेरी मां बैठती थी…
ध्यान में….
वो घंटी…. आज भी तरसती है… मां के
हाथों की उस छुअन को… जिसे वो
घंटो बजाया करती थी…
ईश्वर को खुश करने के लिए…
वो चंदन आज भी…. हाथों में आने के
लिए तरसता है… जिससे वो अपने कोमल हाथों से घिसती थीं….
ईश्वर के माथे को सजाने हेतु….
वो रसोईघर…. जहां मेरी मां के हाथों से बने स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू पूरे घर
को महका देती थी…
कहां चले गए वो दिन…..
सवाल करता है…. वो घर…
छतें , खिड़कियां और दरवाजे…
हमेशा बस यही सवाल करते हैं… बस
एक दूसरे से…
शायद कोई जवाब न मिलने पर दीवारों से
टकराकर वापिस आकर गुम सी हो जाती है……..अनेकों अनसुलझे सवाल
……लिए……
आज भी घर पूछता है…..
मुझसे……
©पूर्वार्थ