इतना प्यार मत कर ऐ मुसाफिर रास्तों से ये जालिम मोह | हिंदी शायरी
"इतना प्यार मत कर ऐ मुसाफिर रास्तों से
ये जालिम मोहबत्त राह में कांटे बहुत बिछाती है...
चुभ गया जो कांटा तुझे,दर्द भूल ना पाएगा
बहुत आगे बढ़ रहा है,वापस लौट भी
नहीं पाएगा"
इतना प्यार मत कर ऐ मुसाफिर रास्तों से
ये जालिम मोहबत्त राह में कांटे बहुत बिछाती है...
चुभ गया जो कांटा तुझे,दर्द भूल ना पाएगा
बहुत आगे बढ़ रहा है,वापस लौट भी
नहीं पाएगा