अब तो खुश होने से डर लगने लगा है, अपने ही साए से ड | हिंदी शायरी

"अब तो खुश होने से डर लगने लगा है, अपने ही साए से डर लगने लगा है, जिन गलियों ने बदनाम करने में कसर ना छोड़ी, अब उन गलियों में जाने से डर लगने लगा है, ये कच्ची उमर की गलती कि सजा है जो, नई लड़कियों कि नज़र से डर लगने लगा है, उस जवानी को उसने इस कदर लूटा कि अब, मेरे रास्ते पर गुज़रने वालों से डर लगने लगा है, दिन का उजाला आँख मूंदकर सन्नाटे में बदल लेता पर, अँधेरी रात में जुगनुओं से डर लगने लगा है, दुआ में माँगता हूंँ कि वो मुझसे पहले मर जाए, मुझे अपनी पुरानी दुआओं से डर लगने लगा है, मुझे डर है वो मेरी मज़ार को भी बदनाम कर देगा, यही एक डर है जो मौत से डर लगने लगा है।। ©Ajay Dudhwal"

 अब तो खुश होने से डर लगने लगा है,
अपने ही साए से डर लगने लगा है,

जिन गलियों ने बदनाम करने में कसर ना छोड़ी,
अब उन गलियों में जाने से डर लगने लगा है,

ये कच्ची उमर की गलती कि सजा है जो,
नई लड़कियों कि नज़र से डर लगने लगा है,

उस जवानी को उसने इस कदर लूटा कि अब,
मेरे रास्ते पर गुज़रने वालों से डर लगने लगा है,

दिन का उजाला आँख मूंदकर सन्नाटे में बदल लेता पर,
अँधेरी रात में जुगनुओं से डर लगने लगा है,

दुआ में माँगता हूंँ कि वो मुझसे पहले मर जाए,
मुझे अपनी पुरानी दुआओं से डर लगने लगा है,

मुझे डर है वो मेरी मज़ार को भी बदनाम कर देगा,
यही एक डर है जो मौत से डर लगने लगा है।।

©Ajay Dudhwal

अब तो खुश होने से डर लगने लगा है, अपने ही साए से डर लगने लगा है, जिन गलियों ने बदनाम करने में कसर ना छोड़ी, अब उन गलियों में जाने से डर लगने लगा है, ये कच्ची उमर की गलती कि सजा है जो, नई लड़कियों कि नज़र से डर लगने लगा है, उस जवानी को उसने इस कदर लूटा कि अब, मेरे रास्ते पर गुज़रने वालों से डर लगने लगा है, दिन का उजाला आँख मूंदकर सन्नाटे में बदल लेता पर, अँधेरी रात में जुगनुओं से डर लगने लगा है, दुआ में माँगता हूंँ कि वो मुझसे पहले मर जाए, मुझे अपनी पुरानी दुआओं से डर लगने लगा है, मुझे डर है वो मेरी मज़ार को भी बदनाम कर देगा, यही एक डर है जो मौत से डर लगने लगा है।। ©Ajay Dudhwal

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