पत्थरों को भी दर्द तो होता है चुप रह्ते है रोते न | हिंदी कविता

"पत्थरों को भी दर्द तो होता है चुप रह्ते है रोते नहीं फर्क सिर्फ़ यही तो होता है पत्थरों को भी दर्द तो होता है अंधी तुफ़ान भी चलते है गम अन्दर ही घुटकर रोता है दिखाई देते है अच्छे खासे लेकिन उनका अंतर मन अन्दर से टूटा होता है चुप रह्ते है रोते नहीं फर्क सिर्फ यही तो होता है पत्थरों को भी दर्द तो होता है ©Mukesh Tyagi"

 पत्थरों को भी दर्द तो होता है 
चुप रह्ते है रोते नहीं 
फर्क सिर्फ़ यही तो होता है 
पत्थरों को भी दर्द तो होता है 
अंधी तुफ़ान भी चलते है
गम अन्दर ही घुटकर रोता है
दिखाई देते है अच्छे खासे
लेकिन उनका अंतर मन
अन्दर से टूटा होता है
चुप रह्ते है रोते नहीं 
फर्क सिर्फ यही तो होता है
पत्थरों को भी दर्द तो होता है

©Mukesh Tyagi

पत्थरों को भी दर्द तो होता है चुप रह्ते है रोते नहीं फर्क सिर्फ़ यही तो होता है पत्थरों को भी दर्द तो होता है अंधी तुफ़ान भी चलते है गम अन्दर ही घुटकर रोता है दिखाई देते है अच्छे खासे लेकिन उनका अंतर मन अन्दर से टूटा होता है चुप रह्ते है रोते नहीं फर्क सिर्फ यही तो होता है पत्थरों को भी दर्द तो होता है ©Mukesh Tyagi

पत्थरों को भी दर्द तो होता है

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