सोच खेलना आग में चिलचिलाती धूप और बरसते पानी की

"सोच खेलना आग में चिलचिलाती धूप और बरसते पानी की बरसात में,,,, मिट्टी धूल से तो कहीं गंदगी कचरे कूड़े कबाड़ के ढेर से,,,, बैठा निश्चिंत कोई बेखबर, इन भेदों के खेल से,,,, कोई कहता किस्मत कर्म फल कहता कोई समझ है अपनी अपनी अपने विचारों की सोच है,,,,! ********** डॉ. कमल के.प्यासा।"

 सोच

खेलना आग में
चिलचिलाती धूप और 
बरसते पानी की बरसात में,,,,

मिट्टी धूल से तो कहीं 
गंदगी कचरे 
कूड़े कबाड़ के ढेर से,,,,

बैठा निश्चिंत कोई
बेखबर,
इन भेदों के खेल से,,,,

कोई कहता किस्मत
कर्म फल कहता कोई
समझ है अपनी अपनी
अपने विचारों की सोच है,,,,!
**********

डॉ. कमल के.प्यासा।

सोच खेलना आग में चिलचिलाती धूप और बरसते पानी की बरसात में,,,, मिट्टी धूल से तो कहीं गंदगी कचरे कूड़े कबाड़ के ढेर से,,,, बैठा निश्चिंत कोई बेखबर, इन भेदों के खेल से,,,, कोई कहता किस्मत कर्म फल कहता कोई समझ है अपनी अपनी अपने विचारों की सोच है,,,,! ********** डॉ. कमल के.प्यासा।

#meltingdown

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