पृथ्वी हमसे कह रही,पर्यावरण बचाने को।
आओ उसकी पुकार सुनें,कुछ तो विचार करें।
वन्य जीवन बोल रहा है,नदियाँ, जल, वायु बीती है।
संवेदनशीलता से धरा दो,प्राकृतिक अनमोलता को।
हरा-भरा वन सूख रहा है,जल संकट गहराया है।
पृथ्वी की पुकार सुनो,उसके साथ मिलकर चलो।
संरक्षण का वचन लो,हर पेड़,नदी का सम्मान करो।
पर्यावरण को स्वच्छ रखो,यह वचन अदा करो।
©Balwant Mehta
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