अलविदा उन सपनों को हो न सके जो पूरे - ग़म नहीं मग | हिंदी कविता
"अलविदा उन सपनों को
हो न सके जो पूरे -
ग़म नहीं मगर
जानती हूं
लौटेंगे फिर एक बार-
होंगे प्रस्फुटित
समय की कोख से
नए रंग में नए रूप में
कर लूंगी इंतज़ार
अब जुदाई कैसी
अलविदा का क्या काम !"
अलविदा उन सपनों को
हो न सके जो पूरे -
ग़म नहीं मगर
जानती हूं
लौटेंगे फिर एक बार-
होंगे प्रस्फुटित
समय की कोख से
नए रंग में नए रूप में
कर लूंगी इंतज़ार
अब जुदाई कैसी
अलविदा का क्या काम !