जो चल ना सकूं मैं एक पग,घिसट घिसट के आऊंगा ,
ये ऋण नहीं पुरुषार्थ है, मृत्यु उपरांत निभाऊंगा।
शब्द नहीं, प्रण है मेरा, कण कण से है हर क्षण मेरा,
निस्वार्थ न्योछावर तुझपे मां शाश्वत मेरा नश्वर मेरा।
है हृदय हथेली पर रखा, मैं रक्तबीज बन जाऊंगा,
तेरे हित हेतु एक नहीं अनगिनत सिर कटवाऊंगा।
जो शीश मेरा पर्याप्त नहीं, धमनियों का रक्त वो लाल नहीं,
मेरी जिजीविषा ले लेना , तुम बिन एक क्षण की आस नहीं।
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©mautila registan(Naveen Pandey)
#Deshbhakti