हूर नहीं जन्नत में तुम जैसी। सौन्दर्य नहीं है धरती

"हूर नहीं जन्नत में तुम जैसी। सौन्दर्य नहीं है धरती पर। तुम रहती मेरे दिल में हो, जब चाहूं तुम्हें प्यार करु।। डॉ कृष्ण चतुर्वेदी"

 हूर नहीं जन्नत में तुम जैसी।
सौन्दर्य नहीं है धरती पर।
तुम रहती मेरे दिल में हो,
जब चाहूं तुम्हें प्यार करु।।

डॉ कृष्ण चतुर्वेदी

हूर नहीं जन्नत में तुम जैसी। सौन्दर्य नहीं है धरती पर। तुम रहती मेरे दिल में हो, जब चाहूं तुम्हें प्यार करु।। डॉ कृष्ण चतुर्वेदी

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