कितने जख्मों को छिपा बैठी थी बेजुबान थी,तो आह दबा | हिंदी विचार

"कितने जख्मों को छिपा बैठी थी बेजुबान थी,तो आह दबा बैठी थी जानती थी कीमत एक नन्ही सी जान की इसलिए तेरे गुनाहों को भुला बैठी थी भरोसे ने जब उसको ठगा होगा तब आंखों से रक्त ही बहा होगा कुछ वक़्त लगेगा ये घाव तो भर जाएगा सोच कर दिल में उसने यही कहा होगा मातृत्व के सुखद अहसासों को जानी थी मैं पर तेरे इस रूप से तो सच में,अनजानी थी मै बेबस थी,लाचार थी..भूख से थोड़ी बीमार थी फिर भी संतान सुख के लिए बिल्कुल तैयार थी मैं तो मासूम थी, तेरे दिए जख्मों को सही थी मैं उस हाल में भी 3 दिन पानी में रही थी मैं अब तो आंखों में काले बादल से छाने लगे थे मौत की आहटे भी डराने लगे थे जिस पावों ने भरोसे ने खड़ा किया था मुझे वो पांव भी अब डगमगाने लगे थे जो दर्द मिले वो बड़े ही प्यारे निकले इंसानों से रिश्ते कुछ इस तरह हमारे निकले मैं तो बेजुबान थी कह ना सकी और बेगुनाह कातिल मेरे सारे निकले एक ख़्वाब था वो अब रहा नहीं शब्द थे पर अब जबां नहीं निःशब्द 😓"

 कितने जख्मों को छिपा बैठी थी
बेजुबान थी,तो आह दबा बैठी थी
जानती थी कीमत एक नन्ही सी जान की
इसलिए तेरे गुनाहों को भुला बैठी थी 
भरोसे ने जब उसको ठगा होगा
तब आंखों से रक्त ही बहा होगा
कुछ वक़्त लगेगा ये घाव  तो भर जाएगा
सोच कर दिल में उसने यही कहा होगा
मातृत्व के सुखद अहसासों को जानी थी मैं
पर तेरे इस रूप से तो सच में,अनजानी थी मै
बेबस थी,लाचार थी..भूख से थोड़ी बीमार थी
फिर भी संतान सुख के लिए बिल्कुल तैयार थी
मैं तो मासूम थी, तेरे दिए जख्मों को सही थी मैं
उस हाल में भी 3 दिन पानी में रही थी मैं
अब तो आंखों में काले बादल से छाने लगे थे
मौत की आहटे भी डराने लगे थे
जिस पावों ने भरोसे ने खड़ा किया था मुझे
वो पांव भी अब डगमगाने लगे थे
जो दर्द मिले
वो बड़े ही प्यारे निकले
इंसानों से रिश्ते कुछ इस
तरह हमारे निकले
मैं तो बेजुबान थी कह ना सकी
और बेगुनाह कातिल मेरे सारे निकले 
एक ख़्वाब था वो अब रहा नहीं
शब्द थे पर अब जबां नहीं

निःशब्द 😓

कितने जख्मों को छिपा बैठी थी बेजुबान थी,तो आह दबा बैठी थी जानती थी कीमत एक नन्ही सी जान की इसलिए तेरे गुनाहों को भुला बैठी थी भरोसे ने जब उसको ठगा होगा तब आंखों से रक्त ही बहा होगा कुछ वक़्त लगेगा ये घाव तो भर जाएगा सोच कर दिल में उसने यही कहा होगा मातृत्व के सुखद अहसासों को जानी थी मैं पर तेरे इस रूप से तो सच में,अनजानी थी मै बेबस थी,लाचार थी..भूख से थोड़ी बीमार थी फिर भी संतान सुख के लिए बिल्कुल तैयार थी मैं तो मासूम थी, तेरे दिए जख्मों को सही थी मैं उस हाल में भी 3 दिन पानी में रही थी मैं अब तो आंखों में काले बादल से छाने लगे थे मौत की आहटे भी डराने लगे थे जिस पावों ने भरोसे ने खड़ा किया था मुझे वो पांव भी अब डगमगाने लगे थे जो दर्द मिले वो बड़े ही प्यारे निकले इंसानों से रिश्ते कुछ इस तरह हमारे निकले मैं तो बेजुबान थी कह ना सकी और बेगुनाह कातिल मेरे सारे निकले एक ख़्वाब था वो अब रहा नहीं शब्द थे पर अब जबां नहीं निःशब्द 😓

#RIPHUMANITY

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