सब हमनें चुना खुद ही फिर शिकायत भी क्या करना, ईश्क | हिंदी शायरी

"सब हमनें चुना खुद ही फिर शिकायत भी क्या करना, ईश्क में हारकर सबकुछ फिर बगावत भी क्या करना, यह घर ना रहा घर‌ वो अब ज़मींजद हो चुका कब का खंडहर की दीवारों पर फिर सजावट भी क्या करना,"

 सब हमनें चुना खुद ही फिर शिकायत भी क्या करना,
ईश्क में हारकर सबकुछ फिर बगावत भी क्या करना,
यह घर ना रहा घर‌ वो अब ज़मींजद हो चुका कब का
खंडहर की दीवारों पर फिर सजावट भी क्या करना,

सब हमनें चुना खुद ही फिर शिकायत भी क्या करना, ईश्क में हारकर सबकुछ फिर बगावत भी क्या करना, यह घर ना रहा घर‌ वो अब ज़मींजद हो चुका कब का खंडहर की दीवारों पर फिर सजावट भी क्या करना,

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