आसान नहीं होता। घर से दूर निकलते वक्त, मीलों दूर च | English Poetry

"आसान नहीं होता। घर से दूर निकलते वक्त, मीलों दूर चलते वक्त। खुद को सम्हालते हुए, आंसुओं को टालते हुए। यादों को समेटकर, जख्मों को कुरेदकर। छोड़कर वो अपना कमरा, कितनी यादों से था जो भरा। थोड़ा सुकून भरी वो शाम, यार दोस्तों के वो नाम। मां के हाथ का वो खाना, पिता का वो हर बार समझाना। यूं ही घर छोड़ना कभी आसान नहीं होता। ©Sanjiv Chauhan"

 आसान नहीं होता।
घर से दूर निकलते वक्त, मीलों दूर चलते वक्त।
खुद को सम्हालते हुए, आंसुओं को टालते हुए।
यादों को समेटकर, जख्मों को कुरेदकर।
छोड़कर वो अपना कमरा, कितनी यादों से था जो भरा।
थोड़ा सुकून भरी वो शाम, यार दोस्तों के वो नाम। 
मां के हाथ का वो खाना, पिता का वो हर बार समझाना।

यूं ही घर छोड़ना कभी आसान नहीं होता।

©Sanjiv Chauhan

आसान नहीं होता। घर से दूर निकलते वक्त, मीलों दूर चलते वक्त। खुद को सम्हालते हुए, आंसुओं को टालते हुए। यादों को समेटकर, जख्मों को कुरेदकर। छोड़कर वो अपना कमरा, कितनी यादों से था जो भरा। थोड़ा सुकून भरी वो शाम, यार दोस्तों के वो नाम। मां के हाथ का वो खाना, पिता का वो हर बार समझाना। यूं ही घर छोड़ना कभी आसान नहीं होता। ©Sanjiv Chauhan

#Journey

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