Sanjiv Chauhan

Sanjiv Chauhan Lives in Jaithara, Uttar Pradesh, India

jo kah nhi pate likh dete hain......

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#Waqt एक वक्त था हर चीज के लिए वक्त निकाल लेते थे, एक वक्त है खुद के लिए वक्त कम पड़ गया है। वो वक्त जो कटता नहीं था आने वाले वक्त की बेवक्त बातों के बिना। ये वक्त है जो कटता नहीं है उस वक्त की बेवक्त यादों के बिना। उस वक्त ये गिला था वक्त मिलता नहीं साथ वक्त बिताने का। इस वक्त ये गिला है तूने वक्त नहीं दिया कभी मुझको समझ पाने का। उस वक्त तू कुछ भी बोल देती थी यकीन हो जाता था यूं ही। इस वक्त तुझे वक्त याद नहीं आता मजबूरियों के आगे। आज ये वक्त है तेरा। आज ये वक्त है मेरा। लेकिन उस वक्त वो वक्त हमारा होता था। ©Sanjiv Chauhan

#Waqt  #Waqt 

एक वक्त था हर चीज के लिए वक्त निकाल लेते थे,
एक वक्त है खुद के लिए वक्त कम पड़ गया है।

वो वक्त जो कटता नहीं था आने वाले वक्त की बेवक्त बातों के बिना। ये वक्त है जो कटता नहीं है उस वक्त की बेवक्त यादों के बिना।

उस वक्त ये गिला था वक्त मिलता नहीं साथ वक्त बिताने का।
इस वक्त ये गिला है तूने वक्त नहीं दिया कभी मुझको समझ पाने का।

उस वक्त तू कुछ भी बोल देती थी यकीन हो जाता था यूं ही।
इस वक्त तुझे वक्त याद नहीं आता मजबूरियों के आगे।

आज ये वक्त है तेरा।
आज ये वक्त है मेरा।

लेकिन उस वक्त वो वक्त हमारा होता था।

©Sanjiv Chauhan

#Waqt

13 Love

#Sarkari भारी मन, थोड़ी उदासी, जिम्मेदारी और अनिश्चितताओं के बीच हर बार घर से वापस आ जाना पड़ता है शहर यूंही ही। यहां आकर कुछ और ही हो जाता हूं, खुद को छोड़ आता हूं वहीं कहीं, जब से सरकारी हुए हैं खुद के रहे नहीं। ©Sanjiv Chauhan

#random_thoughts #Sarkari  #Sarkari 

भारी मन, थोड़ी उदासी, जिम्मेदारी और अनिश्चितताओं के बीच हर बार घर से वापस आ जाना पड़ता है शहर यूंही ही।
यहां आकर कुछ और ही हो जाता हूं,  खुद को छोड़ आता हूं वहीं कहीं, जब से सरकारी हुए हैं खुद के रहे नहीं।

©Sanjiv Chauhan

"सफर" "बीच सफर में घर से वापस लौटते वक्त कुछ भूल जाता हूं जो साथ में ले गया था शायद, बिखरने लगती हैं कुछ उलझनें,कुछ बेचैनियां, कुछ मायूसियां यूं ही, जब देखता हूं लहलहाते खेतों को, बहती हुई नदियों को, भीड़ में उदास चेहरों को, हर चेहरा यूं ही अजनबी सा दिखता है, यूं तो घर से लौटते वक्त अपनों से मिल पाने का कुछ सुकून भी होता है साथ, सफर की हलचल, सफर की थकान ,सफर की शामें, अपनों की यादें सब कुछ थोड़ा थोड़ा साथ ले आता हूं मगर कुछ है जो वापस लौटते वक्त भूल जाता हूं। शायद यूं ही खुद को भूल आता हूं कहीं पहुंचने की जद्दोजहद में। ©Sanjiv Chauhan

#Journey #घर  "सफर"

"बीच सफर में घर से वापस लौटते वक्त कुछ भूल जाता हूं जो साथ में ले गया था शायद, बिखरने लगती हैं कुछ उलझनें,कुछ बेचैनियां, कुछ मायूसियां यूं ही, जब देखता हूं लहलहाते खेतों को, बहती हुई नदियों को, भीड़ में उदास चेहरों को, हर चेहरा यूं ही अजनबी सा दिखता है,
 यूं तो घर से लौटते वक्त अपनों से मिल पाने का कुछ सुकून भी होता है साथ, 
सफर की हलचल, सफर की थकान ,सफर की शामें, अपनों की यादें सब कुछ थोड़ा थोड़ा साथ ले आता हूं मगर कुछ है जो वापस लौटते वक्त भूल जाता हूं।
 शायद यूं ही खुद को भूल आता हूं कहीं पहुंचने की जद्दोजहद में।

©Sanjiv Chauhan

सफर #Journey #घर

11 Love

आसान नहीं होता। घर से दूर निकलते वक्त, मीलों दूर चलते वक्त। खुद को सम्हालते हुए, आंसुओं को टालते हुए। यादों को समेटकर, जख्मों को कुरेदकर। छोड़कर वो अपना कमरा, कितनी यादों से था जो भरा। थोड़ा सुकून भरी वो शाम, यार दोस्तों के वो नाम। मां के हाथ का वो खाना, पिता का वो हर बार समझाना। यूं ही घर छोड़ना कभी आसान नहीं होता। ©Sanjiv Chauhan

#Journey  आसान नहीं होता।
घर से दूर निकलते वक्त, मीलों दूर चलते वक्त।
खुद को सम्हालते हुए, आंसुओं को टालते हुए।
यादों को समेटकर, जख्मों को कुरेदकर।
छोड़कर वो अपना कमरा, कितनी यादों से था जो भरा।
थोड़ा सुकून भरी वो शाम, यार दोस्तों के वो नाम। 
मां के हाथ का वो खाना, पिता का वो हर बार समझाना।

यूं ही घर छोड़ना कभी आसान नहीं होता।

©Sanjiv Chauhan

#Journey

0 Love

"रात" वो लंबी सुबह , वो सुस्ती भरी दोपहर, वो ढलती शाम घर पे सब कुछ तो होता था, जब से कमाने के लिए शहर आए हैं, बस रात होती है ©Sanjiv Chauhan

#Raat  "रात" 
वो लंबी  सुबह , वो सुस्ती भरी दोपहर, वो ढलती शाम घर पे सब कुछ तो  होता था,

जब से कमाने के लिए शहर आए हैं, बस रात होती है

©Sanjiv Chauhan

#Raat

7 Love

#home "सुकून तलाशने घर जाता हूं, मायूसियां लेकर लौट आता हूं।" ©Sanjiv Chauhan

#walkingalone #Home  #home

"सुकून तलाशने घर जाता हूं,
मायूसियां लेकर लौट आता हूं।"

©Sanjiv Chauhan
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