"सफर"
"बीच सफर में घर से वापस लौटते वक्त कुछ भूल जाता हूं जो साथ में ले गया था शायद, बिखरने लगती हैं कुछ उलझनें,कुछ बेचैनियां, कुछ मायूसियां यूं ही, जब देखता हूं लहलहाते खेतों को, बहती हुई नदियों को, भीड़ में उदास चेहरों को, हर चेहरा यूं ही अजनबी सा दिखता है,
यूं तो घर से लौटते वक्त अपनों से मिल पाने का कुछ सुकून भी होता है साथ,
सफर की हलचल, सफर की थकान ,सफर की शामें, अपनों की यादें सब कुछ थोड़ा थोड़ा साथ ले आता हूं मगर कुछ है जो वापस लौटते वक्त भूल जाता हूं।
शायद यूं ही खुद को भूल आता हूं कहीं पहुंचने की जद्दोजहद में।
©Sanjiv Chauhan
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