ख़्वाबों को लोरियाँ सुना सुला गई हूँ मैं
कितने दफ़ा तुझे ऐ वक़्त भुला गई हूँ मैं
मुझसे मिले कभी मेरे वजूद का सफ़र
पूछ भी तो लूँ कहाँ तक आ गई हूँ मैं
जो आग है ज़हन में वो कुंदन करे मुझे
सोने की तरह ख़ुद को यूँ जला गई हूँ मैं
अल्फाज़ स्याही में घुले बन गए ज़ुबाँ
कुछ ना कहूँ तो भी सब बता गई हूँ मैं
-सरिता मलिक बेरवाल
©Sarita Malik Berwal