जोशीमठ
अंत का आभास किसी को है नही
आरंभ से अंत, परंतु निश्चित है
चिरकाल से मनुष्य खुद को शास्वत समझे
कौन प्रकृति के लिए यहां चिंतित है
बेकसूरों के मकानों पर दरारें बेहिसाब
मंत्री अफसर कहते फिरें, उत्तराखंड विकसित है
ठंड में ठिठुर रहे अपने घरों से हो बेघर
हुक्मरान भूल करें, आवाम हो रही दंडित है
लोभ की सीमा नहीं तृष्णा बेहिसाब है
मौन व्यर्थ है यहां, मुखरता जवाब है।
मां सुरकंडा दया करो फिर ऐसा संकट ना हो
देवभूमि का कोई शहर, जोशीमठ ना हो
-गजेंद्र गौरव