गुजरते मंजर को फिर से भिगोया हैं, कुछ चंद लम्हों क

"गुजरते मंजर को फिर से भिगोया हैं, कुछ चंद लम्हों के लिए फिर से रोया है । दासताँ थी कि पतझड़ में सो जाएँगे गिरकर, कि सूखे मौसम में भी घटाओं ने उसे फिर से भिगोया है ।। Alka yadav"

 गुजरते मंजर को फिर से भिगोया हैं,
कुछ चंद लम्हों के लिए फिर से रोया है ।
दासताँ थी कि पतझड़ में सो जाएँगे गिरकर,
कि सूखे मौसम में भी घटाओं ने उसे फिर से भिगोया है ।। 
        

Alka yadav

गुजरते मंजर को फिर से भिगोया हैं, कुछ चंद लम्हों के लिए फिर से रोया है । दासताँ थी कि पतझड़ में सो जाएँगे गिरकर, कि सूखे मौसम में भी घटाओं ने उसे फिर से भिगोया है ।। Alka yadav

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