कैसे कह दु की फर्क नही पड़ता मुझे,
बात तुमसे जो न हो,तो अकेला सा हो जाता हूं
गुस्सा तुम जो हो जाओ,तो रूठ मैं भी जाता हूं
क्योंकि में जानता हूं कि तुम माना लोगे मुझे
तन्हाई में यू अकेला ना जाने दोगे मुझे
मेरा गुस्सा ही जैसे तेरे गुस्से का तोड़ है
हमे नही पता ये मोहब्बत है या कुछ और है
पर तेरा रूठना और तेरा ही मना लेना
हमेशा यू ही मेरा हाथ थामे रहना
मैं नही जानता कि,
ये खूबी कैसे आ जाती है तुझे
कैसे कह तू की फर्क नही पड़ता मुझे...
कैसे कह दु की फर्क नही पड़ता मुझे...
फर्क पड़ता है,बोहोत फर्क पड़ता है🤚