कभी मुझे बहुत पसंद था... तुम्हारे संग बैठना, पहरों | हिंदी कविता

"कभी मुझे बहुत पसंद था... तुम्हारे संग बैठना, पहरों तुमसे बातें करना, तुम्हारा हाथ थाम चलते-चलते, तुम्हें घर तक छोड़ कर आना, और सबसे ज्यादा पसंद था... तुम्हारे साथ गुजारे लम्हों को याद कर, अकेले में मंद-मंद मुस्कुराना। जानती हो... तुमसे बिछड़ने के बरसों बाद, आज भी जब मुस्कुराना चाहता हूं, मैं अकेले बैठ तुम संग बिताए गए, सब लम्हों को याद कर लेता हूं। डॉ दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep"

 कभी मुझे बहुत पसंद था...
तुम्हारे संग बैठना,
पहरों तुमसे बातें करना,
तुम्हारा हाथ थाम चलते-चलते,
तुम्हें घर तक छोड़ कर आना,
और सबसे ज्यादा पसंद था...
तुम्हारे साथ गुजारे लम्हों को याद कर,
अकेले में मंद-मंद मुस्कुराना।

जानती हो...
तुमसे बिछड़ने के बरसों बाद,
आज भी जब मुस्कुराना चाहता हूं,
मैं अकेले बैठ तुम संग बिताए गए,
सब लम्हों को याद कर लेता हूं।

डॉ दीपक कुमार 'दीप'





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©Dr Deepak Kumar Deep

कभी मुझे बहुत पसंद था... तुम्हारे संग बैठना, पहरों तुमसे बातें करना, तुम्हारा हाथ थाम चलते-चलते, तुम्हें घर तक छोड़ कर आना, और सबसे ज्यादा पसंद था... तुम्हारे साथ गुजारे लम्हों को याद कर, अकेले में मंद-मंद मुस्कुराना। जानती हो... तुमसे बिछड़ने के बरसों बाद, आज भी जब मुस्कुराना चाहता हूं, मैं अकेले बैठ तुम संग बिताए गए, सब लम्हों को याद कर लेता हूं। डॉ दीपक कुमार 'दीप' . ©Dr Deepak Kumar Deep

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