हां! मैं तुम्हें रोज गले लगा लेता हूं, सुबह उठते

"हां! मैं तुम्हें रोज गले लगा लेता हूं, सुबह उठते ही शाम तक तुम्हारा चेहरा यूं सामनें देख तब! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं, सुबह की ताज़ी धूप और शाम की सौंदर्य लालिमा जब भी मेरे तन पे पड़ती है तब! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं!! इस दिखावे की दुनिया में जब कोई निस्वार्थ प्रेम करता है तब! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं, कभी कभी जब मैं दुखित होता हूं, टूट जाता हूं और फ़िर अचानक मेरे अंदर स्फूर्ति का आना, तय है! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं, गर्मी की शीतल हवा हो तुम, सर्द मौसम में जो गर्मी लाए वो दवा हो तुम, नहीं हो पास हमारे फ़िर भी कोई मलाल नहीं! ख़ुद को तुम्हें सौंप दिया तभी तो अंदर सवाल नहीं!! और सुनो गले लगा लेता हूं जब इस प्रकृति में होती हो गले लगा लेता हूं जब तुम मेरे स्मृति में होती हो।। "अम्बुज मिश्र" ©ambuj mishra"

 हां! 
मैं तुम्हें रोज गले लगा लेता हूं,
सुबह उठते ही शाम तक तुम्हारा चेहरा यूं सामनें देख तब! 
मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं,
सुबह की ताज़ी धूप और शाम की सौंदर्य लालिमा जब भी मेरे तन पे पड़ती है तब! 
मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं!!
इस दिखावे की दुनिया में जब कोई निस्वार्थ प्रेम करता है तब! 
मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं,
कभी कभी जब मैं दुखित होता हूं, टूट जाता हूं और फ़िर अचानक मेरे अंदर स्फूर्ति का आना, तय है!
मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं,
गर्मी की शीतल हवा हो तुम,
सर्द मौसम में जो गर्मी लाए वो दवा हो तुम,
नहीं हो पास हमारे फ़िर भी कोई मलाल नहीं!
ख़ुद को तुम्हें सौंप दिया तभी तो अंदर सवाल नहीं!!

और सुनो

गले लगा लेता हूं जब इस प्रकृति में होती हो
गले लगा लेता हूं जब तुम मेरे स्मृति में होती हो।।
           "अम्बुज मिश्र"

©ambuj mishra

हां! मैं तुम्हें रोज गले लगा लेता हूं, सुबह उठते ही शाम तक तुम्हारा चेहरा यूं सामनें देख तब! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं, सुबह की ताज़ी धूप और शाम की सौंदर्य लालिमा जब भी मेरे तन पे पड़ती है तब! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं!! इस दिखावे की दुनिया में जब कोई निस्वार्थ प्रेम करता है तब! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं, कभी कभी जब मैं दुखित होता हूं, टूट जाता हूं और फ़िर अचानक मेरे अंदर स्फूर्ति का आना, तय है! मैं तुम्हें गले लगा लेता हूं, गर्मी की शीतल हवा हो तुम, सर्द मौसम में जो गर्मी लाए वो दवा हो तुम, नहीं हो पास हमारे फ़िर भी कोई मलाल नहीं! ख़ुद को तुम्हें सौंप दिया तभी तो अंदर सवाल नहीं!! और सुनो गले लगा लेता हूं जब इस प्रकृति में होती हो गले लगा लेता हूं जब तुम मेरे स्मृति में होती हो।। "अम्बुज मिश्र" ©ambuj mishra

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