पंख और आसमाँ
पंख हैं मेरे छोटे छोटे- आसमान विशाल
फैलाव इसका कर देता है मुझे हताश
कैसे पहुंचूंगी तेरे करीब
तन मन शिथिल, हुई हर श्वास निराश
पेड़़ की टहनी पर बैठी,करती हूं ख़ुद से सवाल
बैठी रहेगी गर ऐसे ,आएगी क्या मंज़िल पास
मंजिल पानी है गर,फड़फड़ाना ही होगा पंखोंको-
उड़ना ही तो है जीवन का नाम
पंख मिले हैं उड़ने के लिए
तिरस्कार न कर इनका
आस न होने देना धुंधली
छूना है तुझे आसमान
बाहें पसारे जो,दे रहा तुझे अाव्हान
पंख और आसमान....