पत्नी:-
देखी हैं मैंने,
ढेरों उजड़ी बस्तियाँ
प्यारे, सुनहरे ख़्वाबों की।
छोड़ भी दो न
तुम पति मेरे
बहुत बुरी है लत शराबों की।
पति:-
छोड़ अगर दूँ
इस लत को
तो कैसे मैं रह पाऊँगा।
एक घूँट गर
गले न उतरे
उस दिन मैं मर जाऊँगा।
पत्नी:-
सपने टूटे,
अपने छूटे,
ख़ुद भी टूट चुकी हूँ मैं।
अपनी आबरू
अपने हाथों से
मानो लूट चुकी हूँ मैं।
पति:-
अब तो चाहे
जान ही जाए
कोशिश करके सम्भलूँगा।
तेरी आबरू
बचाने की ख़ातिर
ख़ुद को अब से बदलूँगा।
©abhi sagar