"मेरे मुकद्दर में गमों के सैलाब काफ़ी है
ना जाने और कितने आसुओं के हिसाब बाकी है
जहां से शुरू हुआ था वहीं पर पहुंच गया हूं मैं
ना जाने और कितने उजारों से दो-चार होना बाकी है
डरता हूं कि हमसाये कहीं चले ना जाए छोड़कर
ना जाने और कितनी दहशतों से हलाकान होना बाकी है
अभी खत्म कहां हुए हैं सितम सितमगारों के
ना जाने और कितने इम्तहानों से बेज़ार होना बाकी है
©The_sourabh_baba"