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बाबा की कलम से- A lyricist 💖
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The_sourabh_baba
9 Love
मेरे मुकद्दर में गमों के सैलाब काफ़ी है ना जाने और कितने आसुओं के हिसाब बाकी है जहां से शुरू हुआ था वहीं पर पहुंच गया हूं मैं ना जाने और कितने उजारों से दो-चार होना बाकी है डरता हूं कि हमसाये कहीं चले ना जाए छोड़कर ना जाने और कितनी दहशतों से हलाकान होना बाकी है अभी खत्म कहां हुए हैं सितम सितमगारों के ना जाने और कितने इम्तहानों से बेज़ार होना बाकी है ©The_sourabh_baba
11 Love
जो लोग वाक़िफ ही नहीं मेरे दिल के जज़्बात से वो क्या ही ताल्लुक रक्खेंगे मेरे गम-ए-हयात से गैरों की तकलीफ़ में जो अपनों को भूल गए हैं वो अब बात भी करते हैं अपने मतलब की बात से ©The_sourabh_baba
15 Love
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निकलता हूं घर से रातों में कि समेट लूंगा चांदनी बात अलग है कि हाथ मेरे अंधेरे भी नहीं लगते। उजाले में जब नज़रे साथ देने को है राजी तब कमबख्त कदम कहते है कि हम नहीं चलते।
7 Love
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