ग़ज़ल
छोड़ मुझे साजन जाता तब।।
दौड़ उधर ही मन जाता तब।।
चाक जिगर लोहे का होता।
उससे लड़ने घन जाता तब।।
हो जाती गर मुझे मोहब्बत।
मैं भी शायर बन जाता तब।।
इन पैरों में होती दुनिया।
दीन के हक में तन जाता तब।।
खत्म कहानी मेरी होती।
घुन की मानिंद सन जाता तब।।
याद हमेशा ही आती है।
दूर चला बचपन जाता तब।।
साधना कृष्ण
©साधना कृष्ण
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