कब तलक मेला चलेगा,
फिर अकेलापन खलेगा,
दिवस का अवसान होगा,
सूर्य अस्ताचल ढ़लेगा,
ख़त्म होंगे बाग से फल,
वृक्ष भी कबतक फलेगा,
बढ़ेगा उत्ताप जिस दिन,
बर्फ पर्वत पर गलेगा,
मोह में जिसके पड़े तुम,
वही आकर फिर छलेगा,
फूँक कर तुम छाछ पीना,
तप्त हो यदि मुँह जलेगा,
लाख करलो कोशिशें तुम,
लिखा विधि का ना टलेगा,
चूकना अवसर न 'गुंजन',
हाथ फिर कबतक मलेगा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
समस्तीपुर बिहार
©Shashi Bhushan Mishra
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