हज़ारों आँखों पर कहीं शोर नहीं जलता ।
धीरे-धीरे ये जिस्म मिटता है,
पर किसी का ध्यान नहीं बटता ।
किसे कहुँ शहर में सब मासूम है ।
सर कटता तो है पर कभी शर्म से नहीं झुकता ।
कोई नहीं कहता अब अरे ऊपरवाला सुन रहा है ।
और किसे कहता आसमाँ तो एक झूठी कहावत है ।
आजकल दर्द भी खामोशी के चादर बिछाये बैठे है ।
मज़ाल है कि किसी को जख्म दिख जाये ।
और ऐसे भी कोई नहीं देखता ।।
©Prince Raज
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