मैंने खामोशी से उसे चाहा था,
पर उसने भीड़ बुला ली मुझे देखने
बड़ी बारीकियों से ख्वाब तोड़ी वो,
मैंने छुप छुपाकर सपने उधार दे दिए
संदूक में बंद एक तरफा मोहब्बत,
बिना चाभी के ताले कभी खोल देती है
दिये तूफां में भी अब जलते रहते हैं,
मंजूरी नहीं दी अंधेरों को अब ख्वाब देखने....
©कुन्दन मिश्रा
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