कितनी बेदम है तुम्हारी हाकिमी कहते हैं!
लोग बातों को तुम्हारी काग़ज़ी कहते हैं!
गुनाहों की गली से तो मैं बच आया यारों!
पर शराफत को मेरी बुज़दिली कहते हैं!
आप क्या समझोगे मेरे दर्द को मेरे हुज़ूर!
आप तो हर बात को दिल्लगी कहते हैं!
नहीं समझे ये मीरा की मुहब्बत श्याम से!
पागल लोग उसको भी बावरी कहते हैं!
कौन सी जाने तुम्हारी आँख पे हैं पट्टियाँ
बस्तियाँ जलने को भी रोशनी कहते हैं!
भूलके सारी मुहब्बत और सारी मस्तियाँ!
उम्र ढलने को ही तो ज़िन्दगी कहते हैं!
भूख से बेहाल किसी के लड़खड़ाने पर!
लाेग उसकी बेबसी को बेख़ुदी कहते हैं!
©अनूप 'समर'
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