मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं वो गज़ल आपको सुनाता हूं

"मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं वो गज़ल आपको सुनाता हूं एक समंदर है तेरी आखों में.. जहां मैं सब भूल जाता हूं तू किसी रेल-सी गुज़रती है.. मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं !! ©Aditya Bhardwaj"

 मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं
वो गज़ल आपको सुनाता हूं
एक समंदर है तेरी आखों में..
जहां मैं सब भूल जाता हूं
तू किसी रेल-सी गुज़रती है..
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं !!

©Aditya Bhardwaj

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूं वो गज़ल आपको सुनाता हूं एक समंदर है तेरी आखों में.. जहां मैं सब भूल जाता हूं तू किसी रेल-सी गुज़रती है.. मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं !! ©Aditya Bhardwaj

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