अभिमान करू, ऐसा है गणतंत्र हमारा,
लहू से लिखा, हर एक इंकलाब हमारा।
सूर्य की किरणों सी है, अरुणाई इसमें,
सागर की लहरों सी है, तरुणाई इसमें।
फिर भी कभी-कभी भारत माँ रोती हैं,
अधर्म,अत्याचार देख विचलित होती हैं।
प्रेम लिखने बैठूं तो इंकलाब लिखती हूँ ,
आज भी द्रोपदी सा जब अध्याय देखती हूँ।
सादर
नेहा नारायण सिंह
©Neha Narayan Singh
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