अभिमान करू, ऐसा है गणतंत्र हमारा, लहू से लिखा, हर | मराठी विचार

"अभिमान करू, ऐसा है गणतंत्र हमारा, लहू से लिखा, हर एक इंकलाब हमारा। सूर्य की किरणों सी है, अरुणाई इसमें, सागर की लहरों सी है, तरुणाई इसमें। फिर भी कभी-कभी भारत माँ रोती हैं, अधर्म,अत्याचार देख विचलित होती हैं। प्रेम लिखने बैठूं तो इंकलाब लिखती हूँ , आज भी द्रोपदी सा जब अध्याय देखती हूँ। सादर नेहा नारायण सिंह ©Neha Narayan Singh"

 अभिमान करू, ऐसा है गणतंत्र हमारा,
लहू से लिखा, हर एक इंकलाब हमारा।

सूर्य की किरणों सी है, अरुणाई इसमें,
सागर की लहरों सी है, तरुणाई इसमें।

फिर भी कभी-कभी  भारत माँ रोती हैं,
अधर्म,अत्याचार देख विचलित होती हैं।

प्रेम लिखने बैठूं तो इंकलाब लिखती हूँ ,
आज भी द्रोपदी सा जब अध्याय देखती हूँ।

सादर
नेहा नारायण सिंह

©Neha Narayan Singh

अभिमान करू, ऐसा है गणतंत्र हमारा, लहू से लिखा, हर एक इंकलाब हमारा। सूर्य की किरणों सी है, अरुणाई इसमें, सागर की लहरों सी है, तरुणाई इसमें। फिर भी कभी-कभी भारत माँ रोती हैं, अधर्म,अत्याचार देख विचलित होती हैं। प्रेम लिखने बैठूं तो इंकलाब लिखती हूँ , आज भी द्रोपदी सा जब अध्याय देखती हूँ। सादर नेहा नारायण सिंह ©Neha Narayan Singh

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