सत्ता तोड़ कर..., सत्ता बनाएंगे,
रियासतें जोड़ कर मुल्क बनायेंगे।
नीति है..., या है..., यह कूटनीति,
जो कह लो..., ये तो है राजनीति।
राजा हो या हो.., आज के नेता,
तबकी प्रजा, या हो आजकी जनता।
सबका यहाँ अपना ताना-बाना है,
शह - मात का खेल बड़ा पुराना है।
शतरंज की..., विषाद पर बिखरा,
हर मोहरा..., काम कर जाता है।
ना जाने कब, कहाँ और कैसे...,
सत्ता पर..., पलटवार कर जाता है।
मुल्क बने..., और सरहदें बनी...,
बँटा तो हम..., जैसों का परिवार।
भाई - भाई है यहाँ..., दुश्मन बनें,
और हुए..., माँओं के आँचल लाल।
मुंबई, कलकत्ता और झारखण्ड दो हमें,
अब कितना..., करोगे खण्ड - खण्ड।
धर्म पर बँटवारा, भाषा पर बँटवारा,
सत्ता है क्या तुमको भारत माँ से प्यारा?
हिन्द - हिन्द हम सब हैं हिन्द की सेना,
कहता.., हर एक दिल हिन्दुस्तानी है।
फिर सत्ता पाने की खातिर क्यों...?
बना बाग़ी..., ये दिल हिन्दुस्तानी है।
शिथिल पड़े..., लहू को तुम्हारे,
हम धूप की ताप देने आये है।
सूर्य का तेज लिए मस्तक पर,
शिव तांडव..., नृत्य करने आए है।
अटल प्रतिज्ञा है..., अब अपनी,
सुरक्षित हर गर्भ कर जायेंगे।
मातृभूमि की खातिर..., सुनो तुम,
जान देंगे..., और जान ले जाएंगे।
सत्ता का यह खेल ना खेलो,
ओ..., सत्ता के सौदागरों.......,
सोच - समझ कर बात करो तुम,
संसद हो, या हो लोक - सदन।✍️
©Neha Narayan Singh
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