चलो रिश्तों को संजो कर रखते है,
एक दूसरे से कुछ मतलब रखते है।
खून है अपना, जो आया है दूर से,
अपनी रोटी उससे दूर ही रखते है।
है अज़ीज हमको हमारे माता पिता,
चलो उनको बृद्धाश्रम में रखते है।
अजीज़ था अपना,चला गया दूर,
दुश्मनी तो हम आज भी रखते है।
तेरे जाने के बाद याद करूँ तुझको,
यह ख़्वाब तो अब बेमानी लगते हैं।
ऐसा है दुनिया का दस्तूर-ए-इनायत 'संजय'
इंसानियत से हम अक्सर दूर ही रहते है।
संजय सक्सेना
प्रयागराज।
©Sanjai Saxena
#Childhood