इर्द-गिर्द घूमती अपनी इन परछाइयों का क्या करें कैस | हिंदी कविता

"इर्द-गिर्द घूमती अपनी इन परछाइयों का क्या करें कैसे इन्हें समझाएं,कैसे इनसे निबाह करें तन्हाइयों में हम तो किसी तरह गुज़र बसर कर लेते हैं कोई आके इन्हें समझाए मेरे लिए ये न परेशान हुआ करें धूप में मेरे साथ जलती है,अँधेरे में गुम मुझमें समां जाती है कोई आ के इन्हें समझाए वो मेरे अंदर न छुपा करे लोगों की भीड़ से मैं खुद को अलग-थलग कर लेती हूं कोई आके समझाए मेरे पास आके वो हास-परिहास न किया करे छोड़ दो मुझे इतना अकेले के मैं मन का गुबार निकाल सकूं मेरी परछाइयों से कह दो के वो मेरे साथ न चला करें। ©Richa Dhar"

 इर्द-गिर्द घूमती अपनी इन परछाइयों का क्या करें
कैसे इन्हें समझाएं,कैसे इनसे निबाह करें

तन्हाइयों में हम तो किसी तरह गुज़र बसर कर लेते हैं
कोई आके इन्हें समझाए मेरे लिए ये न परेशान हुआ करें

धूप में मेरे साथ जलती है,अँधेरे में गुम मुझमें समां जाती है
कोई आ के इन्हें समझाए वो मेरे अंदर न छुपा करे

लोगों की भीड़ से मैं खुद को अलग-थलग कर लेती हूं
कोई आके समझाए मेरे पास आके वो हास-परिहास न किया करे

छोड़ दो मुझे इतना अकेले के मैं मन का गुबार निकाल सकूं
मेरी परछाइयों से कह दो के वो मेरे साथ न चला करें।

©Richa Dhar

इर्द-गिर्द घूमती अपनी इन परछाइयों का क्या करें कैसे इन्हें समझाएं,कैसे इनसे निबाह करें तन्हाइयों में हम तो किसी तरह गुज़र बसर कर लेते हैं कोई आके इन्हें समझाए मेरे लिए ये न परेशान हुआ करें धूप में मेरे साथ जलती है,अँधेरे में गुम मुझमें समां जाती है कोई आ के इन्हें समझाए वो मेरे अंदर न छुपा करे लोगों की भीड़ से मैं खुद को अलग-थलग कर लेती हूं कोई आके समझाए मेरे पास आके वो हास-परिहास न किया करे छोड़ दो मुझे इतना अकेले के मैं मन का गुबार निकाल सकूं मेरी परछाइयों से कह दो के वो मेरे साथ न चला करें। ©Richa Dhar

#Travel मेरी परछाईं✍️✍️✍️

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