चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था, रात कि त | हिंदी Poetry

"चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था, रात कि तन्हाइयों में वक्त भी ढला जा रहा था, जिन्दगी कि शोर ने लूट मचा रखी हो जैसे, एक मन था जो अलविदा कहते जा रहा था। माधवी मधु ©madhavi madhu"

 चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था,
रात कि तन्हाइयों में वक्त भी ढला जा रहा था,
जिन्दगी कि शोर  ने लूट मचा रखी हो जैसे,
एक मन था जो अलविदा कहते जा रहा था।
                                माधवी मधु

©madhavi madhu

चांद जा रहा था बादलों में छिपा जा रहा था, रात कि तन्हाइयों में वक्त भी ढला जा रहा था, जिन्दगी कि शोर ने लूट मचा रखी हो जैसे, एक मन था जो अलविदा कहते जा रहा था। माधवी मधु ©madhavi madhu

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