प्राथमिकताओं के आभाव में,
सीमित कर ख़ुद को समझती वो बोझ थी |
उसके नेत्रों को हर स्थान पर,
जिसकी खोज थी |
सम्मुख था वो उसके,
अनभिज्ञ वो देखती हर रोज थी |
निश्छल मन की वो अबोध लड़की,
उसके ह्रदय रूपी पुष्कर की एक मात्र सरोज थी |
- पूजा ♡
©ll जीवन प्रभा ll