जैसे सूर्य जगमगाता है चंदा को अपने आग़ोश से निकलते धूप से,
जैसे तारे टिम टिमाते हैं धरती की छाती से चिपक कर ही,
क्या ऐसी ही किसी रात, उस नदी के किनारे मेरी बाहों को भरोगी तुम?
©Deepanshu
जैसे सूर्य जगमगाता है चंदा को अपने आग़ोश से निकलते धूप से,
जैसे तारे टिम टिमाते हैं धरती की छाती से चिपक कर ही,
क्या ऐसे ही किसी रात, उस नदी के किनारे मेरी बाहों को भरोगी तुम?
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