मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! - MD Arbaz ADEEB मैं

"मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! - MD Arbaz ADEEB मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! अख़लाक़ के मुआशरे में काफ़ी नीचे हूँ , पहली नसीहत मुझे समझ नही आती , जिस तरह पहली मोहबत समझ न आई थी । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! मैं अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता , नहीं छूटती मुझसे मेरी आदतें और नहीं छूटती रदीफ़ - ओ - काफ़िये की ये गंदी लत । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! मुझे अदाकरी भी अच्छी नहीं आती , मैं ज़्यादा देर नहीं कर सकता शराफत का ढोंग । मेरी कलम कड़वे हक़ीक़त की आदि है , मुझसे नहीं लिखा जाता मीठा झूठ भी । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ , मैं अच्छा अदाकार भी नहीं , लिख देता हूँ बुरी और नंगी बातें भी , मैं अच्छा कलमकार भी नहीं । मैं काग़ज़ पर उतारता हूँ उसका हस्ता हुआ चेहरा , मैं नहीं उतार पाता उस हसी के पीछे का दर्द , मैं अच्छा मुसव्विर भी नहीं । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ । मुझपर हावी है मेरी आदतें , मेरी हरकतें ! हावी है मुझपर शराब के कुछ घूँट और सिगरेट दो कश ! मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! इन सब ख़ामियों के बाद मैं सोंचता हूँ , मैं इस ज़माने के लिए हूँ ही नहीं । शायद ग़लत जगह आ गया हूँ , शायद शदीद ग़लत जगह । MD Arbaz ADEEB"

 मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! - MD Arbaz ADEEB

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ !
अख़लाक़ के मुआशरे में काफ़ी नीचे हूँ ,
पहली नसीहत मुझे समझ नही आती ,
जिस तरह पहली मोहबत समझ न आई थी ।

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ !
मैं अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता ,
नहीं छूटती मुझसे मेरी आदतें और
नहीं छूटती रदीफ़ - ओ - काफ़िये की ये गंदी लत ।

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ !
मुझे अदाकरी भी अच्छी नहीं आती ,
मैं ज़्यादा देर नहीं कर सकता शराफत का ढोंग ।
मेरी कलम कड़वे हक़ीक़त की आदि है ,
मुझसे नहीं लिखा जाता मीठा झूठ भी ।

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ,
मैं अच्छा अदाकार भी नहीं ,
लिख देता हूँ बुरी और नंगी बातें भी ,
मैं अच्छा कलमकार भी नहीं ।
मैं काग़ज़ पर उतारता हूँ उसका
हस्ता हुआ चेहरा , मैं नहीं उतार पाता
उस हसी के पीछे का दर्द , मैं अच्छा
मुसव्विर भी नहीं ।

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ।
मुझपर हावी है मेरी आदतें , मेरी हरकतें !
हावी है मुझपर शराब के कुछ घूँट और
सिगरेट दो कश ! 

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ !
इन सब ख़ामियों के बाद मैं सोंचता हूँ ,
मैं इस ज़माने के लिए हूँ ही नहीं ।
शायद ग़लत जगह आ गया हूँ ,
शायद शदीद ग़लत जगह ।

MD Arbaz ADEEB

मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! - MD Arbaz ADEEB मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! अख़लाक़ के मुआशरे में काफ़ी नीचे हूँ , पहली नसीहत मुझे समझ नही आती , जिस तरह पहली मोहबत समझ न आई थी । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! मैं अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आता , नहीं छूटती मुझसे मेरी आदतें और नहीं छूटती रदीफ़ - ओ - काफ़िये की ये गंदी लत । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! मुझे अदाकरी भी अच्छी नहीं आती , मैं ज़्यादा देर नहीं कर सकता शराफत का ढोंग । मेरी कलम कड़वे हक़ीक़त की आदि है , मुझसे नहीं लिखा जाता मीठा झूठ भी । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ , मैं अच्छा अदाकार भी नहीं , लिख देता हूँ बुरी और नंगी बातें भी , मैं अच्छा कलमकार भी नहीं । मैं काग़ज़ पर उतारता हूँ उसका हस्ता हुआ चेहरा , मैं नहीं उतार पाता उस हसी के पीछे का दर्द , मैं अच्छा मुसव्विर भी नहीं । मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ । मुझपर हावी है मेरी आदतें , मेरी हरकतें ! हावी है मुझपर शराब के कुछ घूँट और सिगरेट दो कश ! मैं ज़माने से काफ़ी पीछे हूँ ! इन सब ख़ामियों के बाद मैं सोंचता हूँ , मैं इस ज़माने के लिए हूँ ही नहीं । शायद ग़लत जगह आ गया हूँ , शायद शदीद ग़लत जगह । MD Arbaz ADEEB

#shadesoflife

People who shared love close

More like this

Trending Topic