मंजिलों की आशा है, खुद में ही निराशा है,
थक गए है पांव मगर चलने को तैयार बेतहाशा है।
रातों की नींद को बेचेनियों ने समेटा है,
सपनों की उड़ान को मजबूरियों ने लपेटा है।
जाने कब तक ठेहरा रहूंगा,
अपनी उलझनों में उलझा रहूंगा।
कुछ वक्त तो बीते जिंदगी में हसीन,
जिसे याद कर पूरी जिंदगी जीता रहूंगा।।।।
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