सुलगते हुई हालत है मेरे, अब इन्हें यूँ... हवा तो ना दो!
थोड़ा अदब से, थोड़ा सलिखे से...तुम पढ़े लिखे नजर आते हो!
चलो माना तुम्हे कुछ याद नहीं, ना हम याद ना हमारी वो नुक्कड़ की चाय पर हुई मुलाकाते याद...
चलो माना तुम्हे वो पिछली बारिशो में एक साथ भीगे थे वो भी याद नहीं, ना वो सर्दियों में एक साथ लिपटे थे वो भी याद नहीं..
अभी कल ही तो देखा था तुम्हे , वो गली के मोड़ से जाते हुई, हाथ दिखाया था तुमने "Hiiiiiii" कहके, क्या बताऊ क्या क्या हुआ था..
मै वही था, पर दिमाग ना जाने क्यों कहाँ कहाँ दौड़ गया था!