मेरी यादों के बचपन का यूं ही गुजर जाना
हमारा तुम्हारा हर शाम आना
ठिठुरथी उन शामों का यूं ही गुजर जाना
कभी इसको मनाना कभी उसको मनाना
कभी उनका रूठ जाना
उलझे हुए किस्सों को भी सुलझाना
और सुलझे हुए किस्सों को कुछ उलझना
खेलों की जुंबिश बातों के ढेर
आपस की रंजिश पल भर में ढेर
लेकीन टूटे हुए सपनो और बिछड़े हुए अपनो
का गम हर शाम सताना
हंसना मानना घर लौट आना
यही तो करता आ रहा हूं इतने सालों से रोज
दर्द भरे गीतों का को हर शाम गुनगुनाना
मेरी यादों के बचपन का यूं ही गुजरा
©AVIRAL MISHRA
#Childhood