AVIRAL MISHRA

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ये हुनर ये खेल कब नाराजगी में बदल गया वो आशिकी की फिकर में उल्फत से गफलत कर गया माना की निगाहें तबस्सुम का अहसास देती हैं बस कुछ देर तक ही झूँठा आगाज देती हैं उससे कहो की सम्हल जाये क्योंकी फिर न वक्त मिलेगा नाराज करने का न हिज़र ए शाज करने का ये सब गलतफहमी है तुम्हारी इसको दूर कर दो उल्फत ए शाज को मंजूर कर दो नही तो हवाओं का रुख बदलना हमे भी आता है और जिगर की आग गहरी है आगर हांथ डालोगे तो जान लो यहां भी भरी दोपहरी है ©AVIRAL MISHRA

#LoveOrFriendship  ये हुनर ये खेल 
कब नाराजगी में बदल गया 
वो आशिकी की फिकर में उल्फत से गफलत कर गया 
माना की निगाहें तबस्सुम का अहसास देती हैं
बस कुछ देर तक ही झूँठा आगाज देती हैं 
उससे कहो की सम्हल जाये
क्योंकी फिर न वक्त मिलेगा नाराज करने का 
न हिज़र ए शाज करने का 
ये सब  गलतफहमी है तुम्हारी इसको दूर कर दो 
उल्फत ए शाज को मंजूर कर दो 
नही तो हवाओं का रुख बदलना हमे भी आता है 
और जिगर की आग गहरी है आगर हांथ डालोगे 
तो जान लो यहां भी भरी दोपहरी है

©AVIRAL MISHRA

मेरी यादों के बचपन का यूं ही गुजर जाना हमारा तुम्हारा हर शाम आना ठिठुरथी उन शामों का यूं ही गुजर जाना कभी इसको मनाना कभी उसको मनाना कभी उनका रूठ जाना उलझे हुए किस्सों को भी सुलझाना और सुलझे हुए किस्सों को कुछ उलझना खेलों की जुंबिश बातों के ढेर आपस की रंजिश पल भर में ढेर लेकीन टूटे हुए सपनो और बिछड़े हुए अपनो का गम हर शाम सताना हंसना मानना घर लौट आना यही तो करता आ रहा हूं इतने सालों से रोज दर्द भरे गीतों का को हर शाम गुनगुनाना मेरी यादों के बचपन का यूं ही गुजरा ©AVIRAL MISHRA

#Childhood  मेरी यादों के बचपन का यूं ही गुजर जाना
हमारा तुम्हारा हर शाम आना 
 ठिठुरथी उन शामों का यूं ही गुजर जाना
कभी इसको मनाना कभी उसको मनाना
कभी उनका रूठ जाना 
उलझे हुए किस्सों को भी सुलझाना 
और सुलझे हुए किस्सों को कुछ उलझना 
खेलों की जुंबिश बातों के ढेर 
आपस की रंजिश पल भर में ढेर 
लेकीन टूटे हुए सपनो और बिछड़े हुए अपनो 
का गम हर शाम सताना
हंसना मानना घर लौट आना
यही तो करता आ रहा हूं इतने सालों से रोज
दर्द भरे गीतों का को हर शाम  गुनगुनाना
मेरी यादों के बचपन का यूं ही  गुजरा

©AVIRAL MISHRA

#Childhood

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एक पल की दूरी है मौत से मेरी एक पल पास हूं जिदंगी के उम्र का वो दौर गुजरा कि जिदंगी अब खो गई मौत मुझसे पूछती है कि जिदंगी क्यों सो गई मौत क्या है कुछ भी नही शोक है , या कुछ भी नही भावना का रंज है दर्द है ,या कुछ भी नही जानता हूं जिंदगी का सच मन का भवर है ,या कुछ भी नही ©AVIRAL MISHRA

#Save  एक पल की दूरी है मौत से मेरी
एक पल पास हूं जिदंगी के 
उम्र का वो दौर गुजरा 
कि जिदंगी अब खो गई 
मौत मुझसे पूछती है 
कि जिदंगी क्यों सो गई
मौत क्या है कुछ भी नही
शोक है , या कुछ भी नही 
भावना का रंज है 
दर्द है ,या कुछ भी नही
जानता हूं जिंदगी का सच 
मन का भवर है ,या कुछ भी नही

©AVIRAL MISHRA

#Save

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संघर्ष साधते हैं विजयघोष जीवन्तता का आत्मा बोध प्राण तत्वों के घ्रमण में प्रयास पीड़ा के क्रमण में आत्म चिंतन हो हृदय में फिर गगन में शोर हो जब लगे की मन की शोषित हो चला राष्ट्रप्रेम अब कुपोषित हो चला संकल्प पोषित दृग से तारों को गगन में छोड़ दो दुराचार के तरुण को तोड़ दो जीवन्तता के इस भरम को छोड़ दो वीरता का जिक्र काफी हौसला अब बन चला हृदय दीप की ज्वाल सघन उद्धरित विषयों के ज्योतिप्रबल दंभ कूट के निम्न श्रृजन हृदयाग्नि का विषबोध यहां आवृत्तिकाओं के सफर में जिदंगी के दृढ़ पहर में कोशिशों के मृत शहर में जिदंगी का भोर इतना रात के जुगनू के जितना उसकी तल्खी में बस फर्क इतना हमारी कोशिश के दर्द जितना आवृत्तिकाओं के सफर में जिदंगी के दृढ़ पहर में कोशिशों के मृत शहर में ©AVIRAL MISHRA

#baarish  संघर्ष साधते हैं विजयघोष 
जीवन्तता का आत्मा बोध
प्राण तत्वों के घ्रमण में
प्रयास पीड़ा के क्रमण में
आत्म चिंतन हो हृदय में 
फिर गगन में शोर हो
जब लगे की 
मन की शोषित हो चला
राष्ट्रप्रेम अब कुपोषित हो चला 
संकल्प पोषित दृग से तारों
 को गगन में छोड़ दो 
दुराचार के तरुण को तोड़ दो 
जीवन्तता के इस भरम को छोड़ दो 

वीरता का जिक्र काफी 
हौसला अब बन चला 
हृदय दीप की ज्वाल सघन 
उद्धरित विषयों के ज्योतिप्रबल 
दंभ कूट के निम्न श्रृजन
हृदयाग्नि का विषबोध यहां
आवृत्तिकाओं के सफर में 
जिदंगी के दृढ़ पहर में
कोशिशों के मृत शहर में

जिदंगी का भोर इतना
 रात के जुगनू के जितना
उसकी तल्खी में बस फर्क इतना 
हमारी कोशिश के दर्द जितना
आवृत्तिकाओं के सफर में 
जिदंगी के दृढ़ पहर में
कोशिशों के मृत शहर में

©AVIRAL MISHRA

#baarish

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