संघर्ष साधते हैं विजयघोष
जीवन्तता का आत्मा बोध
प्राण तत्वों के घ्रमण में
प्रयास पीड़ा के क्रमण में
आत्म चिंतन हो हृदय में
फिर गगन में शोर हो
जब लगे की
मन की शोषित हो चला
राष्ट्रप्रेम अब कुपोषित हो चला
संकल्प पोषित दृग से तारों
को गगन में छोड़ दो
दुराचार के तरुण को तोड़ दो
जीवन्तता के इस भरम को छोड़ दो
वीरता का जिक्र काफी
हौसला अब बन चला
हृदय दीप की ज्वाल सघन
उद्धरित विषयों के ज्योतिप्रबल
दंभ कूट के निम्न श्रृजन
हृदयाग्नि का विषबोध यहां
आवृत्तिकाओं के सफर में
जिदंगी के दृढ़ पहर में
कोशिशों के मृत शहर में
जिदंगी का भोर इतना
रात के जुगनू के जितना
उसकी तल्खी में बस फर्क इतना
हमारी कोशिश के दर्द जितना
आवृत्तिकाओं के सफर में
जिदंगी के दृढ़ पहर में
कोशिशों के मृत शहर में
©AVIRAL MISHRA
#baarish