हमारे जीवन में एक मसीहा ऐसे आए
आकर उन्होंने अलख जगाई थी
युगो युगो से सोई अपनी कोम जगाई थी
अत्याचारों से जीना बड़ा दुश्वार था
पीठ पर झाड़ू और गले में हांडी
हर जगह तिरष्कार था
जीवन भरा था अत्याचारों से
ठोर ठिकाना कहीं नहीं पाए थे
एक घुट पानी तक नसीब नहीं होता था
नहीं मंदिर हमने देखे थे
अछूत कह कर धितकारे जाते थे
लिखने पढ़ने भी नहीं देते थे
वेद पुराण भागवत गीता सुनने की भी मनाई थी
हर तरफ बोलबाला सम्राज्य अहंकार का
उंच नीच और भेद भाव का घोर अंधेरा था
हर एक नारी को घृणा से देखा जाता था।
दलित पिछड़ों ने भी कभी नजर नहीं मिलाई थी
युगों युगों से बंधे हुए गुलामी की जंजीरों में
पशुओं से भी वत्तर जिंदगी कभी जीते थे
तोड़ डाली सब जंजीरे बंधी हर कलाई थी
अपनी कोम की दशा देखकर मन ग्लानि से भर गया
अपशब्दों से बोला जाना दिल में घर कर गया
रूह कांपी गद्दारों की जब बाबासाहेब ने कलम उठाई थी
छुआ छूत अपमानो ने दिल बड़ा ही बे हाल क्या
भूख प्यास और बीमारी का मनुवादियों ने कभी न
ख्याल किया
सोया रहता था जग सारा बाबासाहेब को नींद कभी न आई थी
कलम की ताकत के बल पर बाबासाहेब ने लड़ी लड़ाई थी
अपनी कोम के खातिर बाबासाहेब ने मनुस्मृति में आग लगाई थी
भीमा बाई के लाल कहलाते 14अप्रैल 1891को महू मध्य प्रदेश
महू छावनी में जन्म लिया पिता सूबेदार रामजी का मान बड़ाए थे
भीम पुत्री ममता आंबेडकर राइटर जिला गाजियाबाद उत्तर प्रदेश
©Writer Mamta Ambedkar
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